The rudest book ever summary in hindi -अगर आप पर्सनल डेवलपमेंट में विश्वास करते हो और लगातार इंटरनेट पर ऐसे आइडियास और लोगों को ढूंढते रहते हो जो आपको आपकी self awareness बढ़ाने में मदद कर सकें तो अपनी Shwetabh Gangwar व उनकी book the rudest book ever का नाम जरूर सुना होगा।
Shwetabh Gangwar एक थिंकर और प्रोफेशनल प्रॉब्लम सॉल्वर है जो अपने यू ट्यूब चैनल पर लोगों को ये समझाते हैं कि सोचते कैसे हैं और लाइफ की सबसे बड़ी प्रॉब्लम से कैसे डील करते हैं। इसलिए आज के article में हम Shwetabh की book The rudest book ever summary in hindi को डिस्कस करेंगे जो psychology के लिए काफी deep है।
The rudest book ever summary in hindi
1. एक फ्री thinker होने का मतलब है freely unknown territory मे जाना।
ये lesson Shwetabh ने बुक के पहले चैप्टर में डिस्कस किया है जहां पर उन्होने बताया है कि जिन लोगों को शुरू से known इनवायरमेंट में रखा जाता है और उन्हें बचपन से ही कई बिलीफ सिस्टम्स या फिलॉसफी को फैक्ट्स की तरह पेश किया जाता है। वो लोग कभी भी नए आइडियाज को एक्सप्लोर करना सीख ही नहीं पाते।
psychology भी यही बताती है कि अपनी थिंकिंग की लिमिट को एक्सपैंड करने के लिए हमें लगातार कुछ न कुछ नया चैलेन्ज चाहिए होता जो। और जिन लोगों को शुरू से ये सिखाया होता है कि सोचना क्या है वो कभी भी अपनी थिंकिंग एक्सपेंड ही नहीं कर पाते और जब भी उनके आगे एकदम आसान सी की प्रॉब्लम रख दी जाती है, जिनसे वो वाकिफ नहीं होते वो या तो उस प्रॉब्लम को इग्नोर कर देते हैं या फिर उसका सॉल्यूशन दूसरे लोगों से पूछने लगते हैं।
यही रीजन है कि क्यों आज के टाइम पर इतने सारे लोग आपको सेल्फ हेल्प बुक्स बेच रहे हैं, इंटरनेट पर रैंडम कोर्सेस प्रमोट कर रहे हैं या फिर आपको ये बता रहे हैं कि सक्सेसफुल कैसे बनें पर कोई भी आपको ये नहीं सिखा रहा कि आप आत्मनिर्भर बनकर सोचना कैसे सीख सकते हो ताकि आपको बार बार किसी की एडवाइस की ज़रूरत ही न पड़े। ये सिर्फ तभी पॉसिबल होगा जब आप अपनी बिलीफ को question करना चालू करोगे, अपनी ज़िन्दगी की प्रॉब्लम्स के आंसर दूसरों से पूछने या फिर गूगल गढ़ने के बजाए खुद उन्हें सॉल्व करने की कोशिश करोगे और जिन आइडियाज को आप सीधा सीधा रिजेक्ट करते हो उन्हें एक्सप्लोर करना शुरु करो।
2. Wholeness कभी भी outsource नहीं करी जा सकती।
इस lesson को Shwetabh ने relationship और individuality के context में समझाया है और ये बताया है कि किस तरह से जब हमारा सेंस ऑफ सेल्फ इतना स्ट्रांग नहीं होता तब हम दूसरे लोगों पर रिप्लाय करते हैं कि वो हमें सच बताएंगे या फिर वो हमारी वैल्यू डिसाइड करेंगे।
जिन लोगों को बचपन में किसी ऐसे काम को करते हुए टोका जाता है, जिससे उन्हें बहुत सेल्फ सैटिस्फैक्शन मिल रही थी तब वो बच्चा अपनी इंडिविजुअली को रिजेक्ट कर देता है और दूसरे लोगों से अप्रूवल मांगना शुरू कर देता है। इसी वजह से कई लोग सोचते हैं कि उन्हें एक रिलेशनशिप में जाने से कंप्लीट फील होगा या फिर दूसरे लोग उन्हें खुशी लाकर देंगे पर असलियत में ऐसा कभी नहीं होता। आपकी खुशी का परमानेंट सोर्स सिर्फ आप खुद ही बन सकते हो।
Shwetabh Gangwar अपनी book the rudest book ever मे इस आइडिया को एक स्टेप और ले जाकर ये बोलते हैं कि हैप्पीनेस से भी बढ़कर जो चीज है वो है सेल्फ सैटिस्फैक्शन जो कि again सेल्फ अवेयरनेस की मदद से self यानि अपनी true आईडेंटिटी के टच में आकर ही आती है। यानी जब आप whole बनते हो और अपने मिसिंग या रिजेक्टेड पार्ट्स को वापस ढूँढते हों।
बुक में Shwetabh Gangwar ने इस कॉन्सेप्ट के लिए self awareness और introspect जैसे word यूज करें हैं और वो भी आपको घुमा फिराकर इसी पॉइंट पर लाते हैं, जहां पर आपके कॉन्शस और अन कॉन्शस प्रोसेसेस हार्मनी में काम कर रहे होते हैं। यानी या तो आप अपनी जजमेंट और रिऐक्शंस को क्वेश्चन करना चालू कर सकते हो या फिर आप छोटे छोटे इंफॉर्मेशन पैकेट्स को अवॉइड करके जीरो से स्टार्ट कर सकते हो। इस आइडिया के साथ कि आपको कुछ नहीं पता और आप क्लू लेस हो इस तरह से जब आप इंटरेस्ट पकड़ना चालू करोगे, तब आपको मिले हर डेटा पॉइंट को आप एक अलग bias way में एनालाइज कर पाओगे और फाइनली wholeness अचीव कर पाओगे।
3. . इंसानो तो deeply समझने के लिए अच्छाई ओर बुराई के lebel से ऊपर उठो।
क्योंकि जब तक आप पूरी दुनिया और दुनिया में रहने वाले इंसानों को अच्छे या बुरे लेंस के साथ देखोगे तब तक आप दूसरों पर अपनी admiration या hate प्रोजेक्ट करते हुए ये बोलते रहोगे कि कोई इंसान आपका हीरो है और कोई इंसान तो इस दुनिया में जिंदा रहना भी डिजर्व नहीं करता।
पर आपकी psychological ग्रोथ के लिए ये अंडरस्टैंडिंग बहुत जरूरी है कि कोई भी इंसान अपने आप में अच्छा या बुरा नहीं होता। हर इंसान को बस इन्सान की तरह देखो जो कभी अच्छा काम करता है और कभी लेबल। Shwetabh Gangwar ने बताया है कि heroes का ये आइडिया हमें मूवीज और टीवी शो से मिलता है और उसके बाद ये आइडिया एक पैरासाइट की तरह हमारी थिंकिंग प्रोसेस को खराब कर देता है।
अगर हम Joseph Campbell और Carl jung जैसे थिंकर्स की बात करें। जिन्होने heroes और heroic थॉट को काफी डीपली स्टडी करा है तो वो बताते हैं की heroes और ideals कोई नए आइडियाज नहीं है, बल्कि महान heroes के किस्से तो हम सालों से सुनाते आ रहे हैं और ये हीरोज़ लोगों को ये समझाते आए हैं कि एक इन्सान को दुनिया में किस तरह से act करना चाहिए।
क्योंकि कुछ 100 साल पहले जब फिलॉसफी और psychology जैसी फील्ड्स का जन्म नहीं हुआ था, उससे पहले हमारे पास साइकोलॉजी समझाने के लिए सिर्फ स्टोरीज ही थीं। यानि हमारी psychy में एक heighest आइडियल को रखने की जगह पहले से ही बनी हुई है। पर जब हम इस जगह को मूवी एक्टर्स या फिर टीवीशो के करेक्टर से भर लेते हैं, तब सारी प्रॉब्लम शुरू होती है।
क्योंकि इस केस में हम अपने जैसी ही एक दूसरे इंसान को भगवान की तरह ट्रीट करने लगते हैं और ये सोचते हैं कि वो कभी कुछ गलत काम कर ही नहीं सकता। यहां तक कि हम लॉजिकली ये एक्सपेक्ट करते हैं कि जैसे जैसे हम बड़े होंगे और मेच्योर बनेगे वैसे वैसे हम इन सिंपल गुड और बैड जैसे आइडियाज को outgrow कर लेंगे, पर बड़े होने के बाद भी हम पॉलिटिक्स में अच्छे और बुरे लोगों को ढूंढ रहे होते हैं, जिस किसी से हम मिलते हैं उसपर भी अच्छा या बुरा का लेबल लगा देते हैं और कभी भी ये कंसीडर ही नहीं करते कि इंसानों की जो इमेज हम बना कर बैठे हैं, क्या वो सच भी कि।
इसलिए इस अच्छाई और बुराई के ट्रैक से बाहर निकलने के लिए सबसे पहले ये मानें कि आप में बाकी हर इंसान की तरह अच्छाई के साथ साथ बुराई करने की क्षमता भी है और आप शायद अनजाने मे बुरे काम करते भी हो। आपके अंदर की जजमेंट तब तक कम नहीं होगी जब तक आप दुनिया को ओवर सिंपल करने के बजाए अच्छाई और बुराई सही और गलत दोनों साइट्स को कोई ट्रीट करना नहीं स्टार्ट करते और अपने आपको बुरा करने के केपेबल नहीं समझते।
जब आप किसी इंसान को अच्छा या बुरा नहीं समझते, सिर्फ तभी आप उसकी इंसानियत देख सकते हो और दुनिया में चाहे कुछ भी हो या फिर कोई इंसान आपके साथ कितना भी बुरा करे आपके लिए कोई भी चीज़ shocking unaccepted नहीं होगी क्योंकि अब आप human behaviour समझ चुके हो।
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